Saturday, October 20, 2012

Navgrahaho ke havan hetu samhidhaye नवग्रहों के हवन हेतु समिधाएं



नवग्रहों के हवन हेतु समिधाएं

विभिन्न देवताओं और ग्रहों के हवन के लिए समीधा (लकड़ी) का भी अलग-अलग उपयोग होता है। उसी प्रकार विभिन्न प्रकार के कार्यों के लिए भी अलग लकडिय़ों का होम में प्रयोग होता है। सात्विक एवं शुभ कार्यों में कांटेदार तथा कीड़े लगी लकडिय़ों को उपयोग में नहीं लाया जाता है। जैसे बेर, बबुल आदि वही अनाचारी कर्मों में इनका प्रयोग हो सकता है। शुभ कर्मों में आम, चंदन, पलाश, जामुन, क्षीर
, पीपल की लकडिय़ों को हवन हेतु उपयुक्त माना गया है। अलग कार्यों हेतु भी ग्रहों का अलग लकडिय़ों का इस्तेमाल किया जाता है।

रोगों के नाश के लिए

सूर्य के मंत्रों द्वारा मदार की समीधा

आयु वृद्धि हेतु व समस्त कार्य सिद्ध हेतु

चंद्र के मंत्र द्वारा पलाश की समीधा

धन एवं भूमि प्राप्ति हेतु

मंगल के मंत्रों द्वार खेर की समीधा

बुद्धि बढ़ाने हेतु

बुध के मंत्रों से चिचड़ी (अपामार्ग) की समीधा

इष्ट सिद्धि एवं मानसिक विकार दूर करने हेतु

गुरु के मंत्रों से पीपल की समीधा

काम बढ़ाने के लिए

शुक्र के मंत्रों से गुलर की समीधा

Thank you
Best Wishes,
Vijay Goel
Vedic Astrologer and Vastu Consultant,

Cell : +91 8003004666

Friday, September 21, 2012

To gain prosperity धन प्राप्ति के लिए किए जाने वाले तंत्र प्रयोगों

धन प्राप्ति के लिए किए जाने वाले तंत्र प्रयोगों में कई वस्तुओं का उपयोग किया जाता है, कमल गट्टा भी उन्हीं में से एक है। कमल गट्टा कमल के पौधे में से निकलते हैं व काले रंग के होते हैं। यह बाजार में आसानी से मिल जाते हैं। मंत्र जप के लिए इसकी माला भी बनती है। इसके अलावा भी इसके कई प्रयोग हैं। इसके कुछ प्रयोग नीचे लिखे हैं जिनसे माता लक्ष्मी को प्रसन्न किया जा सकता है।

उपाय

1- जो व्यक्ति प्रत्येक बुधवार को 108 कमलगटटे के बीज लेकर घी के साथ एक-एक करके अग्नि में 108 आहुतियां देता है। उसके घर से दरिद्रता हमेशा के लिए चली जाती है।


2- जो व्यक्ति पूजा-पाठ के दौरान की माला अपने गले में धारण करता है उस पर लक्ष्मी की कृपा सदा बनी रहती है।

3- यदि रोज 108 कमल के बीजों से आहुति दें और ऐसा 21 दिन तक करें तो आने वाली कई पीढिय़ां सम्पन्न बनी रहती हैं।

4- यदि दुकान में कमल गट्टे की माला बिछा कर उसके ऊपर भगवती लक्ष्मी का चित्र स्थापित किया जाए तो व्यापार में कमी आ ही नहीं सकती। उसका व्यापार निरंतर उन्नति की ओर अग्रसर होता रहता है।

5- कमल गट्टे की माला भगवती लक्ष्मी के चित्र पर पहना कर किसी नदी या तालाब में विसर्जित करें तो उसके घर में निरंतर लक्ष्मी का आगमन बना रहता है।
---------

Thank you
Best Wishes,
Vijay Goel
Vedic Astrologer and Vastu Consultant,

Vasikaran remedies वशीकरण के अचूक उपाय

वशीकरण के अचूक उपाय
१. यदि शत्रु अनावश्यक परेशान कर रहा हो तो भोजपत्र का टुकड़ा लेकर उस पर लाल चंदन से शत्रु का नाम लिखकर शहद की डिब्बी में डुबोकर रख दें। शत्रु वश में आ जाएगा।
२. काले कमल, भवरें के दोनों पंख, पुष्कर मूल, श्वेत काकजंघा – इन सबको पीसकर सुखाकर चूर्ण बनाकर जिस पर डाले वह वशीभूत होगा।
३. छोटी इलायची, लाल चंदन, सिंदूर, कंगनी , काकड़सिंगी आदि सारी सामग्री को इक्ट्ठा कर धूप बना दें व जिस किसी स्त्री के सामने धूप देगें वह वशीभूत होगी।
४. काकजंघा, तगर, केसर इन सबको पीसकर स्त्री के मस्तक पर तथा पैर के नीचे डालने पर वह वशीभूत होती है।
५. तगर, कूठ, हरताल व केसर इनको समान भाग में लेकर अनामिका अंगुली के रक्त में पीसकर तिलक लगाकर जिसके सम्मुख आएंगे वह वशीभूत हो जाएगा। ज्यादातर सभावशीकरण करने के लिए यह प्रयोग किया जाता है।
६. पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र में अनार की लकड़ी तोड़कर लाएं व धूप देकर उसे अपनी दांयी भुजा में बांध लें तो प्रत्येक व्यक्ति वशीभूत होगा।
७. शुक्ल पक्ष के रविवार को ५ लौंग शरीर में ऐसे स्थान पर रखें जहां पसीना आता हो व इसे सुखाकर चूर्ण बनाकर दूध, चाय में डालकर जिस किसी को पिला दी जाए तो वह वश में हो जाता है।
८. पीली हल्दी, घी (गाय का), गौमूत्र, सरसों व पान के रस को एक साथ पीसकर शरीर पर लगाने से स्त्रियां वश में हो जाती है।
९. बैजयंति माला धारण करने से शत्रु भी मित्रवत व्यवहार करने लगते हैं। भगवान श्री कृष्ण ने यह माला पहनी हुई थी व उन्हें यह अतिप्रिय थी व उनमें सबको मोहित करने की अद्भुत क्षमता भी थी।
१०. कई बार पति किसी दूसरी स्त्री के चंगुल में आ जाता है तो अपनी गृहस्थी बचाने के लिए स्त्रियां यह प्रयोग कर सकती हैं। गुरुवार रात १२ बजे पति के थोड़े से बाल काटकर जला दें व बाद में पैर से मसल दें अवश्य ही जल्दी ही पति सुधर जाएगा।
११. कनेर पुष्प व गौघृत दोनों को मिलाकर, वशीकरण यंत्र रखें व आकर्षण मंत्र का जप करें। जिसका नाम लेकर १०८ बार जप करेंगे तो वह सात दिन के अंदर वशीभूत हो जाएगा।
सम्मोहन शक्तिवर्द्धक सरल उपाय :
१. मोर की कलगी रेश्मी वस्त्र में बांधकर जेब में रखने से सम्मोहन शक्ति बढ़ती है।
२. श्वेत अपामार्ग की जड़ को घिसकर तिलक करने से सम्मोहन शक्ति बढ़ती है।
३. स्त्रियां अपने मस्तक पर आंखों के मध्य एक लाल बिंदी लगाकर उसे देखने का प्रयास करें। यदि कुछ समय बाद बिंदी खुद को दिखने लगे तो समझ लें कि आपमें सम्मोहन शक्ति जागृत हो गई है।
४. गुरुवार को मूल नक्षत्र में केले की जड़ को सिंदूर में मिलाकर पीस कर रोजाना तिलक करने से आकर्षण शक्ति बढ़ती है।
५. गेंदे का फूल, पूजा की थाली में रखकर हल्दी के कुछ छींटे मारें व गंगा जल के साथ पीसकर माथे पर तिलक लगाएं आकर्षण शक्ति बढ़ती है।
६. कई बार आपको यदि ऐसा लगता है कि परेशानियां व समस्याएं बढ़ती जा रही हैं। धन का आगमन रुक गया है या आप पर किसी द्वारा तांत्रिक अभिकर्म” किया गया है तो आप यह टोटके अवश्य प्रयोग करें, आपको इनका प्रभाव जल्दी ही प्राप्त होगा।
तांत्रिक अभिकर्म से प्रतिरक्षण हेतु उपाय
१. पीली सरसों, गुग्गल, लोबान व गौघृत इन सबको मिलाकर इनकी धूप बना लें व सूर्यास्त के 1 घंटे भीतर उपले जलाकर उसमें डाल दें। ऐसा २१ दिन तक करें व इसका धुआं पूरे घर में करें। इससे नकारात्मक शक्तियां दूर भागती हैं।
२. जावित्री, गायत्री व केसर लाकर उनको कूटकर गुग्गल मिलाकर धूप बनाकर सुबह शाम २१ दिन तक घर में जलाएं। धीरे-धीरे तांत्रिक अभिकर्म समाप्त होगा।
३. गऊ, लोचन व तगर थोड़ी सी मात्रा में लाकर लाल कपड़े में बांधकर अपने घर में पूजा स्थान में रख दें। शिव कृपा से तमाम टोने-टोटके का असर समाप्त हो जाएगा।
४. घर में साफ सफाई रखें व पीपल के पत्ते से ७ दिन तक घर में गौमूत्र के छींटे मारें व तत्पश्चात् शुद्ध गुग्गल का धूप जला दें।
५. कई बार ऐसा होता है कि शत्रु आपकी सफलता व तरक्की से चिढ़कर तांत्रिकों द्वारा अभिचार कर्म करा देता है। इससे व्यवसाय बाधा एवं गृह क्लेश होता है अतः इसके दुष्प्रभाव से बचने हेतु सवा 1 किलो काले उड़द, सवा 1 किलो कोयला को सवा 1 मीटर काले कपड़े में बांधकर अपने ऊपर से २१ बार घुमाकर शनिवार के दिन बहते जल में विसर्जित करें व मन में हनुमान जी का ध्यान करें। ऐसा लगातार ७ शनिवार करें। तांत्रिक अभिकर्म पूर्ण रूप से समाप्त हो जाएगा।
६. यदि आपको ऐसा लग रहा हो कि कोई आपको मारना चाहता है तो पपीते के २१ बीज लेकर शिव मंदिर जाएं व शिवलिंग पर कच्चा दूध चढ़ाकर धूप बत्ती करें तथा शिवलिंग के निकट बैठकर पपीते के बीज अपने सामने रखें। अपना नाम, गौत्र उच्चारित करके भगवान् शिव से अपनी रक्षा की गुहार करें व एक माला महामृत्युंजय मंत्र की जपें तथा बीजों को एकत्रित कर तांबे के ताबीज में भरकर गले में धारण कर लें।
७. शत्रु अनावश्यक परेशान कर रहा हो तो नींबू को ४ भागों में काटकर चौराहे पर खड़े होकर अपने इष्ट देव का ध्यान करते हुए चारों दिशाओं में एक-एक भाग को फेंक दें व घर आकर अपने हाथ-पांव धो लें। तांत्रिक अभिकर्म से छुटकारा मिलेगा।
८. शुक्ल पक्ष के बुधवार को ४ गोमती चक्र अपने सिर से घुमाकर चारों दिशाओं में फेंक दें तो व्यक्ति पर किए गए तांत्रिक अभिकर्म का प्रभाव खत्म हो जाता है।
 -----------
 Thank you
Best Wishes,
Vijay Goel
Vedic Astrologer and Vastu Consultant,
Cell : +91 8003004666

Najar dosha नजर उतारने के उपाय

नजर उतारने के उपाय
१॰ बच्चे ने दूध पीना या खाना छोड़ दिया हो, तो रोटी या दूध को बच्चे पर से ‘आठ’ बार उतार के कुत्ते या गाय को खिला दें।

२॰ नमक, राई के दाने, पीली सरसों, मिर्च, पुरानी झाडू का एक टुकड़ा लेकर ‘नजर’ लगे व्यक्ति पर से ‘आठ’ बार उतार कर अग्नि में जला दें। ‘नजर’ लगी होगी, तो मिर्चों की धांस नहीँ आयेगी।

३॰ जिस व्यक्ति पर शंका हो, उसे बुलाकर ‘नजर’ लगे व्यक्ति पर उससे हाथ फिरवाने से लाभ होता है।

४॰ पश्चिमी देशों में नजर लगने की आशंका के चलते ‘टच वुड’ कहकर लकड़ी के फर्नीचर को छू लेता है। ऐसी मान्यता है कि उसे नजर नहीं लगेगी।

५॰ गिरजाघर से पवित्र-जल लाकर पिलाने का भी चलन है।

६॰ इस्लाम धर्म के अनुसार ‘नजर’ वाले पर से ‘अण्डा’ या ‘जानवर की कलेजी’ उतार के ‘बीच चौराहे’ पर रख दें। दरगाह या कब्र से फूल और अगर-बत्ती की राख लाकर ‘नजर’ वाले के सिरहाने रख दें या खिला दें।

७॰ एक लोटे में पानी लेकर उसमें नमक, खड़ी लाल मिर्च डालकर आठ बार उतारे। फिर थाली में दो आकृतियाँ- एक काजल से, दूसरी कुमकुम से बनाए। लोटे का पानी थाली में डाल दें। एक लम्बी काली या लाल रङ्ग की बिन्दी लेकर उसे तेल में भिगोकर ‘नजर’ वाले पर उतार कर उसका एक कोना चिमटे या सँडसी से पकड़ कर नीचे से जला दें। उसे थाली के बीचो-बीच ऊपर रखें। गरम-गरम काला तेल पानी वाली थाली में गिरेगा। यदि नजर लगी होगी तो, छन-छन आवाज आएगी, अन्यथा नहीं।

८॰ एक नींबू लेकर आठ बार उतार कर काट कर फेंक दें।

९॰ चाकू से जमीन पे एक आकृति बनाए। फिर चाकू से ‘नजर’ वाले व्यक्ति पर से एक-एक कर आठ बार उतारता जाए और आठों बार जमीन पर बनी आकृति को काटता जाए।

१०॰ गो-मूत्र पानी में मिलाकर थोड़ा-थोड़ा पिलाए और उसके आस-पास पानी में मिलाकर छिड़क दें। यदि स्नान करना हो तो थोड़ा स्नान के पानी में भी डाल दें।

११॰ थोड़ी सी राई, नमक, आटा या चोकर और ३, ५ या ७ लाल सूखी मिर्च लेकर, जिसे ‘नजर’ लगी हो, उसके सिर पर सात बार घुमाकर आग में डाल दें। ‘नजर’-दोष होने पर मिर्च जलने की गन्ध नहीं आती।

१२॰ पुराने कपड़े की सात चिन्दियाँ लेकर, सिर पर सात बार घुमाकर आग में जलाने से ‘नजर’ उतर जाती है।

१३॰ झाडू को चूल्हे / गैस की आग में जला कर, चूल्हे / गैस की तरफ पीठ कर के, बच्चे की माता इस जलती झाडू को 7 बार इस तरह स्पर्श कराए कि आग की तपन बच्चे को न लगे। तत्पश्चात् झाडू को अपनी टागों के बीच से निकाल कर बगैर देखे ही, चूल्हे की तरफ फेंक दें। कुछ समय तक झाडू को वहीं पड़ी रहने दें। बच्चे को लगी नजर दूर हो जायेगी।

१४॰ नमक की डली, काला कोयला, डंडी वाली 7 लाल मिर्च, राई के दाने तथा फिटकरी की डली को बच्चे या बड़े पर से 7 बार उबार कर, आग में डालने से सबकी नजर दूर हो जाती है।

१५॰ फिटकरी की डली को, 7 बार बच्चे/बड़े/पशु पर से 7 बार उबार कर आग में डालने से नजर तो दूर होती ही है, नजर लगाने वाले की धुंधली-सी शक्ल भी फिटकरी की डली पर आ जाती है।

१६॰ तेल की बत्ती जला कर, बच्चे/बड़े/पशु पर से 7 बार उबार कर दोहाई बोलते हुए दीवार पर चिपका दें। यदि नजर लगी होगी तो तेल की बत्ती भभक-भभक कर जलेगी। नजर न लगी होने पर शांत हो कर जलेगी।

१७॰ “नमो सत्य आदेश। गुरु का ओम नमो नजर, जहाँ पर-पीर न जानी। बोले छल सो अमृत-बानी। कहे नजर कहाँ से आई ? यहाँ की ठोर ताहि कौन बताई ? कौन जाति तेरी ? कहाँ ठाम ? किसकी बेटी ? कहा तेरा नाम ? कहां से उड़ी, कहां को जाई ? अब ही बस कर ले, तेरी माया तेरी जाए। सुना चित लाए, जैसी होय सुनाऊँ आय। तेलिन-तमोलिन, चूड़ी-चमारी, कायस्थनी, खत-रानी, कुम्हारी, महतरानी, राजा की रानी। जाको दोष, ताही के सिर पड़े। जाहर पीर नजर की रक्षा करे। मेरी भक्ति, गुरु की शक्ति। फुरो मन्त्र, ईश्वरी वाचा।
विधि- मन्त्र पढ़ते हुए मोर-पंख से व्यक्ति को सिर से पैर तक झाड़ दें।

१८॰ “वन गुरु इद्यास करु। सात समुद्र सुखे जाती। चाक बाँधूँ, चाकोली बाँधूँ, दृष्ट बाँधूँ। नाम बाँधूँ तर बाल बिरामनाची आनिङ्गा।

najar_nashak

विधि- पहले मन्त्र को सूर्य-ग्रहण या चन्द्र-ग्रहण में सिद्ध करें। फिर प्रयोग हेतु उक्त मन्त्र के यन्त्र को पीपल के पत्ते पर किसी कलम से लिखें। “देवदत्त” के स्थान पर नजर लगे हुए व्यक्ति का नाम लिखें। यन्त्र को हाथ में लेकर उक्त मन्त्र ११ बार जपे। अगर-बत्ती का धुवाँ करे। यन्त्र को काले डोरे से बाँधकर रोगी को दे। रोगी मंगलवार या शुक्रवार को पूर्वाभिमुख होकर ताबीज को गले में धारण करें।

१९॰ “ॐ नमो आदेश। तू ज्या नावे, भूत पले, प्रेत पले, खबीस पले, अरिष्ट पले- सब पले। न पले, तर गुरु की, गोरखनाथ की, बीद याहीं चले। गुरु संगत, मेरी भगत, चले मन्त्र, ईश्वरी वाचा।
विधि- उक्त मन्त्र से सात बार ‘राख’ को अभिमन्त्रित कर उससे रोगी के कपाल पर टिका लगा दें। नजर उतर जायेगी।

२०॰ “ॐ नमो भगवते श्री पार्श्वनाथाय, ह्रीं धरणेन्द्र-पद्मावती सहिताय। आत्म-चक्षु, प्रेत-चक्षु, पिशाच-चक्षु-सर्व नाशाय, सर्व-ज्वर-नाशाय, त्रायस त्रायस, ह्रीं नाथाय स्वाहा।
विधि- उक्त जैन मन्त्र को सात बार पढ़कर व्यक्ति को जल पिला दें।

२१॰ “टोना-टोना कहाँ चले? चले बड़ जंगल। बड़े जंगल का करने ? बड़े रुख का पेड़ काटे। बड़े रुख का पेड़ काट के का करबो ? छप्पन छुरी बनाइब। छप्पन छुरी बना के का करबो ? अगवार काटब, पिछवार काटब, नौहर काटब, सासूर काटब, काट-कूट के पंग बहाइबै, तब राजा बली कहाईब।
विधि- ‘दीपावली’ या ‘ग्रहण’-काल में एक दीपक के सम्मुख उक्त मन्त्र का २१ बार जप करे। फिर आवश्यकता पड़ने पर भभूत से झाड़े, तो नजर-टोना दूर होता है।

२२॰ डाइन या नजर झाड़ने का मन्त्र
“उदना देवी, सुदना गेल। सुदना देवी कहाँ गेल ? केकरे गेल ? सवा सौ लाख विधिया गुन, सिखे गेल। से गुन सिख के का कैले ? भूत के पेट पान कतल कर दैले। मारु लाती, फाटे छाती और फाटे डाइन के छाती। डाइन के गुन हमसे खुले। हमसे न खुले, तो हमरे गुरु से खुले। दुहाई ईश्वर-महादेव, गौरा-पार्वती, नैना-जोगिनी, कामरु-कामाख्या की।
विधि- किसी को नजर लग गई हो या किसी डाइन ने कुछ कर दिया हो, उस समय वह किसी को पहचानता नहीं है। उस समय उसकी हालत पागल-जैसी हो जाती है। ऐसे समय उक्त मन्त्र को नौ बार हाथ में ‘जल’ लेकर पढ़े। फिर उस जल से छिंटा मारे तथा रोगी को पिलाए। रोगी ठीक हो जाएगा। यह स्वयं-सिद्ध मन्त्र है, केवल माँ पर विश्वास की आवश्यकता है।

२३॰ नजर झारने के मन्त्र
१॰ “हनुमान चलै, अवधेसरिका वृज-वण्डल धूम मचाई। टोना-टमर, डीठि-मूठि सबको खैचि बलाय। दोहाई छत्तीस कोटि देवता की, दोहाई लोना चमारिन की।
२॰ “वजर-बन्द वजर-बन्द टोना-टमार, डीठि-नजर। दोहाई पीर करीम, दोहाई पीर असरफ की, दोहाई पीर अताफ की, दोहाई पीर पनारु की नीयक मैद।
विधि- उक्त मन्त्र से ११ बार झारे, तो बालकों को लगी नजर या टोना का दोष दूर होता है।

२४॰ नजर-टोना झारने का मन्त्र
“आकाश बाँधो, पाताल बाँधो, बाँधो आपन काया। तीन डेग की पृथ्वी बाँधो, गुरु जी की दाया। जितना गुनिया गुन भेजे, उतना गुनिया गुन बांधे। टोना टोनमत जादू। दोहाई कौरु कमच्छा के, नोनाऊ चमाइन की। दोहाई ईश्वर गौरा-पार्वती की, ॐ ह्रीं फट् स्वाहा।
विधि- नमक अभिमन्त्रित कर खिला दे। पशुओं के लिए विशेष फल-दायक है।

२५॰ नजर उतारने का मन्त्र

“ओम नमो आदेश गुरु का। गिरह-बाज नटनी का जाया, चलती बेर कबूतर खाया, पीवे दारु, खाय जो मांस, रोग-दोष को लावे फाँस। कहाँ-कहाँ से लावेगा? गुदगुद में सुद्रावेगा, बोटी-बोटी में से लावेगा, चाम-चाम में से लावेगा, नौ नाड़ी बहत्तर कोठा में से लावेगा, मार-मार बन्दी कर लावेगा। न लावेगा, तो अपनी माता की सेज पर पग रखेगा। मेरी भक्ति, गुरु की शक्ति, फुरो मन्त्र ईश्वरी वाचा।
विधिः- छोटे बच्चों और सुन्दर स्त्रियों को नजर लग जाती है। उक्त मन्त्र पढ़कर मोर-पंख से झाड़ दें, तो नजर दोष दूर हो जाता है।

२६॰ नजर-टोना झारने का मन्त्र
“कालि देवि, कालि देवि, सेहो देवि, कहाँ गेलि, विजूवन खण्ड गेलि, कि करे गेलि, कोइल काठ काटे गेलि। कोइल काठ काटि कि करति। फलाना का धैल धराएल, कैल कराएल, भेजल भेजायल। डिठ मुठ गुण-वान काटि कटी पानि मस्त करै। दोहाई गौरा पार्वति क, ईश्वर महादेव क, कामरु कमख्या माई इति सीता-राम-लक्ष्मण-नरसिंघनाथ क।
विधिः- किसी को नजर, टोना आदि संकट होने पर उक्त मन्त्र को पढ़कर कुश से झारे।

नोट :- नजर उतारते समय, सभी प्रयोगों में ऐसा बोलना आवश्यक है कि “इसको बच्चे की, बूढ़े की, स्त्री की, पुरूष की, पशु-पक्षी की, हिन्दू या मुसलमान की, घर वाले की या बाहर वाले की, जिसकी नजर लगी हो, वह इस बत्ती, नमक, राई, कोयले आदि सामान में आ जाए तथा नजर का सताया बच्चा-बूढ़ा ठीक हो जाए। सामग्री आग या बत्ती जला दूंगी या जला दूंगा।´´
 
---------
Thank you
Best Wishes,
Vijay Goel
Vedic Astrologer and Vastu Consultant,
Cell : +91 8003004666

Tuesday, September 18, 2012

Sankat Mochan Dwadas Naama strotra

 
संकटनाशनं श्री गणेशस्तोत्रम्
॥श्री गणेशाय नम:॥
॥नारद उवाच॥
Sankata Nasana Ganesh Stotra
ll Shri Ganeshay Namah ll
ll Narada uvaca ll

प्रणम्य शिरसा देवं गौरीपुत्रं विनायकम् l
भक्तावासं स्मरेन्नित्यामायु: कामार्थ सिध्ध्ये ॥
Pranamya sirasa devan gauriputram vinayakam l
bhaktavasam smaren nityam ayus kamartha siddhaye ll

प्रथमं वक्रतुण्डं च एकदन्तं द्वितीयकम् l
तृतीयं कृष्णपिंगाक्षं गजवकत्रं चतुर्थकम् ॥
Prathamam vakratundam ca ekadantam dvitiyakam l
trtiyam Krsna pingaksam gajavaktram caturthakam ll
लंबोदरं पंचमं च षष्ठं विकटमेव च l
सप्तमं विन्धराजं च धूम्रवर्ण तथाSष्टमम्।l
नवमम् भालचन्द्रम् दशमं तु विनायकम् l
ऐकादशं गणपति द्वादशं तु गजाननम् ॥
Lambodaram pancamam ca sastam vikatam eva ca l
saptamam vighnarajam ca dhumravarnam tathastamam ll
Navamam phalacandram ca dasamam tu vinayakam l
ekadasam ganapatim dvadasam tu gajananam ll

द्वादशैतानि नामानि त्रिसंध्यं य: पठेन्नर: l
न च विघ्नभयं तस्य सर्वसिद्धिकरं परम् ॥
Dvadasaitani namani trisandhyam yah pathen narah l
na ca vighnabhayam tasya sarvasiddhi karam param ll

विद्यार्थी लभते विद्यां धनार्थी लभते धनम् l
पुत्रार्थी लभते पुत्रान् मोक्षार्थी लभते गतिम् ॥
Vidyarthi labhate vidyam dhanarthi labhate dhanam l
putrarthi labhate putran moksarthi Labhathe Gatheem ll

जपेद्द गणपतिस्तोत्रं षड्भिर्मासै: फलम् लभते l
संवत्सरेण सिद्धिं च लभते नात्र संशय ॥
Japet Ganapati stotram sadbhir masaih phalam labhet l
samvatsarena siddhim ca labhate natra samsayah ll

अष्टानां ब्राह्मणानां च लिखित्वा य: समर्पयेत् l
तस्यविद्या भवेत्सर्वा गणेशस्यप्रसादत॥
॥ इतिश्री नारदपुराणे संकटनाशनम् गणपतिस्तोत्रम् सम्पूर्णम् ॥
Astabhyo brahmanebhyas ca likhitva yah samarpayet l
tasya vidya bhavet sarva Ganesasya prasadatah ll
ll Iti sri narada purane samkastanasana Ganesa stotram sampurnam ll

Vakratundaye Hum !!
 Thank you
Best Wishes,
Vijay Goel
Vedic Astrologer and Vastu Consultant,
Cell : +91 8003004666

Monday, August 27, 2012

Swastik and its importance.

This article i got from Net from facebook status, i don't know the source :




 स्वास्तिक का महत्व
_________________

स्वास्तिक अत्यन्त प्राचीन काल से भारतीय संस्कृति में मंगल-प्रतीक माना जाता रहा है। इसीलिए किसी भी शुभ कार्य को करने से पहले स्वस्तिक चिह्व अंकित करके उसका पूजन किया जाता है। स्वस्तिक शब्द सु+अस+क से बना है। ‘सु’ का अर्थ अच्छा, ‘अस’ का अर्थ ‘सत्ता’ या ‘अस्तित्व’ और ‘क’ का अर्थ ‘कर्त्ता’ या करने वाले से है। इस प्रकार ’स्वास्तिक’ शब्द का अर्थ हुआ ‘अच्छा’ या ‘मंगल

’ करने वाला।

स्वस्तिक में एक दूसरे को काटती हुई दो सीधी रेखाएँ होती हैं, जो आगे चलकर मुड़ जाती हैं। इसके बाद भी ये रेखाएँ अपने सिरों पर थोड़ी और आगे की तरफ मुड़ी होती हैं। स्वस्तिक की यह आकृति दो प्रकार की हो सकती है। प्रथम स्वस्तिक, जिसमें रेखाएँ आगे की ओर इंगित करती हुई हमारे दायीं ओर मुड़ती हैं। इसे ‘स्वस्तिक’ (卐) कहते हैं। दूसरी आकृति में रेखाएँ पीछे की ओर संकेत करती हुई हमारे बायीं ओर मुड़ती हैं। इसे ‘वामावर्त स्वस्तिक’ (卍) कहते हैं। जर्मनी के हिटलर के ध्वज में यही ‘वामावर्त स्वस्तिक’ अंकित था।

स्वास्तिक को चित्र के रूप में भी बनाया जाता है और लिखा भी जाता है जैसे "स्वास्ति न इन्द्र:" आदि.

स्वास्तिक भारतीयों में चाहे वे वैदिक हो या सनातनी हो या जैनी ,ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य ... शूद्र सभी मांगलिक कार्यों जैसे विवाह आदि संस्कार घर के अन्दर कोई भी मांगलिक कार्य होने पर "ऊँ" और स्वातिक का दोनो का अथवा एक एक का प्रयोग किया जाता है। हिन्दू समाज में किसी भी शुभ संस्कार में स्वास्तिक का अलग अलग तरीके से प्रयोग किया जाता है, बच्चे का पहली बार जब मुंडन संस्कार किया जाता है तो स्वास्तिक को बुआ के द्वारा बच्चे के सिर पर हल्दी रोली मक्खन को मिलाकर बनाया जाता है, स्वास्तिक को सिर के ऊपर बनाने का अर्थ माना जाता है कि धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष चारों पुरुषार्थों का योगात्मक रूप सिर पर हमेशा प्रभावी रहे, स्वास्तिक के अन्दर चारों भागों के अन्दर बिन्दु लगाने का मतलब होता है कि व्यक्ति का दिमाग केन्द्रित रहे, चारों तरफ़ भटके नही, वृहद रूप में स्वास्तिक की भुजा का फ़ैलाव सम्बन्धित दिशा से सम्पूर्ण एनर्जी को एकत्रित करने के बाद बिन्दु की तरफ़ इकट्ठा करने से भी माना जाता है, स्वास्तिक का केन्द्र जहाँ चारों भुजायें एक साथ काटती है, उसे सिर के बिलकुल बीच में चुना जाता है, बीच का स्थान बच्चे के सिर में परखने के लिये जहाँ हड्डी विहीन हिस्सा होता है और एक तरह से ब्रह्मरंध के रूप में उम्र की प्राथमिक अवस्था में उपस्थित होता है और वयस्क होने पर वह हड्डी से ढक जाता है, के स्थान पर बनाया जाता है। स्वास्तिक संस्कृत भाषा का अव्यय पद है, पाणिनीय व्याकरण के अनुसार इसे वैयाकरण कौमुदी में ५४ वें क्रम पर अव्यय पदों में गिनाया गया है। यह स्वास्तिक पद ’सु’ उपसर्ग तथा ’अस्ति’ अव्यय (क्रम ६१) के संयोग से बना है, इसलिये ’सु+अस्ति=स्वास्ति’ इसमें ’इकोयणचि’ सूत्र से उकार के स्थान में वकार हुआ है। ’स्वास्ति’ में भी ’अस्ति’ को अव्यय माना गया है और ’स्वास्ति’ अव्यय पद का अर्थ ’कल्याण’ ’मंगल’ ’शुभ’ आदि के रूप में प्रयोग किया जाता है। जब स्वास्ति में ’क’ प्रत्यय का समावेश हो जाता है तो वह कारक का रूप धारण कर लेता है और उसे ’स्वास्तिक’ का नाम दे दिया जाता है। स्वास्तिक का निशान भारत के अलावा विश्व में अन्य देशों में भी प्रयोग में लाया जाता है, जर्मन देश में इसे राजकीय चिन्ह से शोभायमान किया गया है, अन्ग्रेजी के क्रास में भी स्वास्तिक का बदला हुआ रूप मिलता है, हिटलर का यह फ़ौज का निशान था, कहा जाता है कि वह इसे अपनी वर्दी पर दोनो तरफ़ बैज के रूप में प्रयोग करता था, लेकिन उसके अंत के समय भूल से बर्दी के बेज में उसे टेलर ने उल्टा लगा दिया था, जितना शुभ अर्थ सीधे स्वास्तिक का लगाया जाता है, उससे भी अधिक उल्टे स्वास्तिक का अनर्थ भी माना जाता है। स्वास्तिक की भुजाओं का प्रयोग अन्दर की तरफ़ गोलाई में लाने पर वह सौम्य माना जाता है, बाहर की तरफ़ नुकीले हथियार के रूप में करने पर वह रक्षक के रूप में माना जाता है।

काला स्वास्तिक श्मशानी शक्तियों को बस में करने के लिये किया जाता है, लाल स्वास्तिक का प्रयोग शरीर की सुरक्षा के साथ भौतिक सुरक्षा के प्रति भी माना जाता है, डाक्टरों ने भी स्वास्तिक का प्रयोग आदि काल से किया है, लेकिन वहां सौम्यता और दिशा निर्देश नही होता है। केवल धन (+) का निशान ही मिलता है। पीले रंग का स्वास्तिक धर्म के मामलों में और संस्कार के मामलों में किया जाता है, विभिन्न रंगों का प्रयोग विभिन्न कारणों के लिये किया जाता है।

स्वास्तिक के चारो और सर्वाधिक पॉजीटिव ऊर्जा पाई गई है दूसरे। अधिक पाजिटिव इनर्जी की वजह से स्वास्तिक किसी भी तरह का वास्तुदोष तुरंत समाप्त कर देता है।


 ----------------------------

Thank you
Best Wishes,
Vijay Goel
Vedic Astrologer and Vastu Consultant,
Cell : +91 8003004666

Monday, August 6, 2012

Importance and how to do Parikrama or Pradakshina


We circumambulate the murti or the ALTAR. This is called Pradakshina. Don't run or walk fast while doing pradashina, do it as slow as possible (similar to tortoise).

Thanking You,
Regards,
Vijay Goel
Astrologer and Vastu Counselor,
Mob : 92145 02239
email : goelvj@gmail.com
www.IndianAstroVedic.com

Thursday, August 2, 2012

Prayer of Exorcism

This is very helpful for those who go to Church regularly.



Holy Mother/Father God of Light, Divine Creator of All That Is, Through the authority vested in me by the Cosmic Christ Consciousness I deliberately call forth to the energy  of Archangel Michael and the Band of Mercy (a group of angels whose job it is to move lost souls out of the astral plane) to enter the the body, home, automobile and place of _____________________ to remove all negative influences and entities. I ask that these energies and entities be taken to the  Light for transmutation and that there be no negative side effects physical, mental or emotional to ___________________’s body. I ask that _______________________’s body be triple sealed (it is helpful to think of the person in three bubbles of light – purple, pink and white ) against any further return or invasion of negative forces. (you can tone at this point). You do not have to have the person’s permission to do exorcism, because possession is against spiritual law. 


Use this EXACTLY how it is stated. DO NOT CHANGE any words.

-------------

Thanking You,
Regards,
Vijay Goel
Astrologer and Vastu Counselor,
Mob : 92145 02239
email : goelvj@gmail.com
www.IndianAstroVedic.com

Sunday, July 22, 2012

Wear Roots to satiate planets

ग्रह शांति के लिए जड़ी धारण करें
यदि मनुष्य परिस्थितिवश अमूल्य रत्न धारण न कर सकें तो ग्रहों से संबंधित जड़ी धारण करना भी फलकारक होता है। विधि-‍विधान से धारण की गई जड़ी भी रत्न के समान ही फलकारक होती है।
प्रत्येक ग्रह की जड़ी को रविवार को पुष्य नक्षत्र में धारण करना चाहिए। जड़ी एक दिन पूर्व शनिवार को सायंकाल स्नान करके शुद्ध वस्त्र धारण कर उस वृक्ष का विधिवत पूजन करके कार्य सिद्धि के लिए उससे प्रार्थना करें व दूसरे दिन शुभ समय पर उसकी जड़ ले आए।
जड़ी को ग्रह के रंग के धागे में पिरोकर पुरुषों को दाहिनी भुजा में व स्त्रियों को बांयी भुजा में पहनना चाहिए।
ग्रह जड़ी
1. सूर्य विल्वमूल
2. चंद्र खिरनी मूल
3. मंगल अनंतमूल
4. बुध विधारा की जड़
5. शुक्र सिंहपुछ की जड़
6. शनि बिच्छोल की जड़
7. राहु खेत चंदन की जड़
8. केतु अश्वगंध की जड़
9. गुरु भारंगी/केले की जड़
विशेष : वृक्ष या पौधा न मिलने पर पंसारी से जड़ खरीदकर पूजा आदि के बाद आस्था व विश्वास के साथ धारण करनी चाहिए। इष्ट देव व ग्रह स्वामी का ध्यान करके व ग्रह के मंत्र का जाप करके जड़ी धारण करने से कार्यसिद्धि अवश्य होती है।
Thank you
Best Wishes,
Vijay Goel
Vedic Astrologer and Vastu Consultant,
Cell : +91 8003004666
 

Saturday, July 14, 2012

Ekadasi Vrata

आज श्रावण महीने के कृष्ण पक्ष की ग्यारहवीं तिथि है , इसे कामिका एकादशी कहते हैं , आज के व्रत की कथा इस प्रकार है :-

युधिष्ठिर ने पूछा: गोविन्द ! वासुदेव ! आपको मेरा नमस्कार है ! श्रावण के कृष्णपक्ष में कौन सी एकादशी होती है ? कृपया उसका वर्णन कीजिये ।

भगवान श्रीकृष्ण बोले: राजन् ! सुनो । मैं तुम्हें एक पापनाशक उपाख्यान सुनाता हूँ, जिसे पूर्वकाल में ब्रह्माजी ने नारदजी के पूछने पर कहा था ।

नारदजी ने प्रश्न किया: हे भगवन् ! हे कमलासन ! मैं आपसे यह सुनना चाहता हूँ कि श्रवण के कृष्णपक्ष में जो एकादशी होती है, उसका क्या नाम है? उसके देवता कौन हैं तथा उससे कौन सा पुण्य होता है? प्रभो ! यह सब बताइये ।

ब्रह्माजी ने कहा: नारद ! सुनो । मैं सम्पूर्ण लोकों के हित की इच्छा से तुम्हारे प्रश्न का उत्तर दे रहा हूँ । श्रावण मास में जो कृष्णपक्ष की एकादशी होती है, उसका नाम ‘कामिका’ है । उसके स्मरणमात्र से वाजपेय यज्ञ का फल मिलता है । उस दिन श्रीधर, हरि, विष्णु, माधव और मधुसूदन आदि नामों से भगवान का पूजन करना चाहिए ।

भगवान श्रीकृष्ण के पूजन से जो फल मिलता है, वह गंगा, काशी, नैमिषारण्य तथा पुष्कर क्षेत्र में भी सुलभ नहीं है । सिंह राशि के बृहस्पति होने पर तथा व्यतीपात और दण्डयोग में गोदावरी स्नान से जिस फल की प्राप्ति होती है, वही फल भगवान श्रीकृष्ण के पूजन से भी मिलता है ।

जो समुद्र और वनसहित समूची पृथ्वी का दान करता है तथा जो ‘कामिका एकादशी’ का व्रत करता है, वे दोनों समान फल के भागी माने गये हैं ।

जो ब्यायी हुई गाय को अन्यान्य सामग्रियों सहित दान करता है, उस मनुष्य को जिस फल की प्राप्ति होती है, वही ‘कामिका एकादशी’ का व्रत करनेवाले को मिलता है । जो नरश्रेष्ठ श्रावण मास में भगवान श्रीधर का पूजन करता है, उसके द्वारा गन्धर्वों और नागों सहित सम्पूर्ण देवताओं की पूजा हो जाती है ।

अत: पापभीरु मनुष्यों को यथाशक्ति पूरा प्रयत्न करके ‘कामिका एकादशी’ के दिन श्रीहरि का पूजन करना चाहिए । जो पापरुपी पंक से भरे हुए संसार समुद्र में डूब रहे हैं, उनका उद्धार करने के लिए ‘कामिका एकादशी’ का व्रत सबसे उत्तम है । अध्यात्म विधापरायण पुरुषों को जिस फल की प्राप्ति होती है, उससे बहुत अधिक फल ‘कामिका एकादशी’ व्रत का सेवन करनेवालों को मिलता है ।
‘कामिका एकादशी’ का व्रत करनेवाला मनुष्य रात्रि में जागरण करके न तो कभी भयंकर यमदूत का दर्शन करता है और न कभी दुर्गति में ही पड़ता है ।

लालमणि, मोती, वैदूर्य और मूँगे आदि से पूजित होकर भी भगवान विष्णु वैसे संतुष्ट नहीं होते, जैसे तुलसीदल से पूजित होने पर होते हैं । जिसने तुलसी की मंजरियों से श्रीकेशव का पूजन कर लिया है, उसके जन्मभर का पाप निश्चय ही नष्ट हो जाता है ।

या दृष्टा निखिलाघसंघशमनी स्पृष्टा वपुष्पावनी
रोगाणामभिवन्दिता निरसनी सिक्तान्तकत्रासिनी ।
प्रत्यासत्तिविधायिनी भगवत: कृष्णस्य संरोपिता
न्यस्ता तच्चरणे विमुक्तिफलदा तस्यै तुलस्यै नम: ॥

‘जो दर्शन करने पर सारे पापसमुदाय का नाश कर देती है, स्पर्श करने पर शरीर को पवित्र बनाती है, प्रणाम करने पर रोगों का निवारण करती है, जल से सींचने पर यमराज को भी भय पहुँचाती है, आरोपित करने पर भगवान श्रीकृष्ण के समीप ले जाती है और भगवान के चरणों मे चढ़ाने पर मोक्षरुपी फल प्रदान करती है, उस तुलसी देवी को नमस्कार है ।’

जो मनुष्य एकादशी को दिन रात दीपदान करता है, उसके पुण्य की संख्या चित्रगुप्त भी नहीं जानते । एकादशी के दिन भगवान श्रीकृष्ण के सम्मुख जिसका दीपक जलता है, उसके पितर स्वर्गलोक में स्थित होकर अमृतपान से तृप्त होते हैं । घी या तिल के तेल से भगवान के सामने दीपक जलाकर मनुष्य देह त्याग के पश्चात् करोड़ो दीपकों से पूजित हो स्वर्गलोक में जाता है ।’

भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं: युधिष्ठिर ! यह तुम्हारे सामने मैंने ‘कामिका एकादशी’ की महिमा का वर्णन किया है । ‘कामिका’ सब पातकों को हरनेवाली है, अत: मानवों को इसका व्रत अवश्य करना चाहिए । यह स्वर्गलोक तथा महान पुण्यफल प्रदान करनेवाली है । जो मनुष्य श्रद्धा के साथ इसका माहात्म्य श्रवण करता है, वह सब पापों से मुक्त हो श्रीविष्णुलोक में जाता है
Thank you
Best Wishes,
Vijay Goel
Vedic Astrologer and Vastu Consultant,
Cell : +91 8003004666

Friday, July 13, 2012

Gomti Chakra and remedies








लाख परेशानियों का एक अचूक उपाय है ये- गोमती चक्र--Part-3

तंत्र शास्त्र के अंतर्गत तांत्रिक क्रियाओं में एक ऐसे पत्थर का उपयोग किया जाता है जो दिखने में बहुत ही साधारण होता है लेकिन इसका प्रभाव असाधारण होता है। इस पत्थर को गोमती चक्र कहते हैं। गोमती चक्रकम कीमत वाला एक ऐसा पत्थर है जो गोमती नदी में मिलता है। गोमती चक्र के साधारण तंत्र उपयोग इस प्रकार हैं-

- होली, दीवाली तथा नवरात्र आदि प्रमुख त्योहारों पर गोमती चक्र की विशेष पूजा की जाती है। अन्य विभिन्न मुहूर्तों के अवसर पर भी इनकी पूजा लाभदायक मानी जाती है।

- सर्वसिद्धि योग तथा रविपुष्य योग पर इनकी पूजा करने से घर में सुख-शांति बनी रहती है।

- पेट संबंधी रोग होने पर 10 गोमती चक्र लेकर रात को पानी में डाल दें तथा सुबह उस पानी को पी लें। इससे पेट संबंध के विभिन्न रोग दूर हो जाते हैं।

- धन लाभ के लिए 11 गोमती चक्र अपने पूजा स्थान में रखें। उनके सामने श्री नम: का जप करें। इससे आप जो भी कार्य या व्यवसाय करते हैं उसमें बरकत होगी और आमदनी बढऩे लगेगी।

- गोमती चक्रों को यदि चांदी अथवा किसी अन्य धातु की डिब्बी में सिंदूर तथा चावल डालकर रखें तो ये शीघ्र शुभ फल देते हैं।

-------------

Thanking You,
Regards,
Vijay Goel
Jaipur
Astrologer and Vastu Counselor,
Mob : 8003004666
email : goelvj@gmail.com
www.vijaygoel.com-----

Thursday, June 14, 2012

Shukar Kavach

 

 


 

 
 


SHUKRA (VENUS) KAVACH


DHYAN.

मृणालकुन्देन्दुपयोजसुप्रभं
पीताम्बरं प्रसृतमक्षमालिनम् ।
समस्तशास्त्रार्थविधिं महान्तं
ध्यायेत्कविं वाञ्छितमर्थसिद्धये ॥ 1 ॥

अथ शुक्रकवचम्
शिरो मे भार्गवः पातु भालं पातु ग्रहाधिपः ।
नेत्रे दैत्यगुरुः पातु श्रोत्रे मे चन्दनद्युतिः ॥ 2 ॥

पातु मे नासिकां काव्यो वदनं दैत्यवन्दितः ।
वचनं चोशनाः पातु कण्ठं श्रीकण्ठभक्तिमान् ॥ 3 ॥

भुजौ तेजोनिधिः पातु कुक्षिं पातु मनोव्रजः ।
नाभिं भृगुसुतः पातु मध्यं पातु महीप्रियः ॥ 4 ॥

कटिं मे पातु विश्वात्मा उरू मे सुरपूजितः ।
जानुं जाड्यहरः पातु जङ्घे ज्ञानवतां वरः ॥ 5 ॥

गुल्फौ गुणनिधिः पातु पातु पादौ वराम्बरः ।
सर्वाण्यङ्गानि मे पातु स्वर्णमालापरिष्कृतः ॥ 6 ॥

फलश्रुतिः
य इदं कवचं दिव्यं पठति श्रद्धयान्वितः ।
न तस्य जायते पीडा भार्गवस्य प्रसादतः ॥ 7 ॥

॥ इति श्रीब्रह्माण्डपुराणे शुक्रकवचं सम्पूर्णम् ॥
 
Best Wishes,
Vijay Goel
IndianAstroVedic.com 
goelvj@gmail.com 
http://www.lalkitab1952.blogspot.com/ 
http://vjgoel.blogspot.com/ 

Friday, May 11, 2012

Winning Legal fight Doha from Guru Granth Sahib


This passage has to be recited 108 times after the reading of the Japji Sahib & completed in the early morning (before sunrise & before dawn light starts) continuously for a period of 40 days. It is good if you keep some water in a copper lota & sprinkle it in the house as well as drink from it on the 40th day. Take care that the water does not dry up during the period that it is being recited. If it does, keep refilling. Of course, there are other passages with similar effect in the Guru Granth Sahib too.

The sound of these shlokas has been rendered in Gurmukhi & it is best to learn the shloka you desire to read from the priest in the nearby Gurudwara. This way the flow & accent of the verse can be easily grasped. Also, the shlokas need to be recited after the full recitation of the 5 prayers given for the Sikhs early in the morning. In the least, the Japji Sahib should definitely be recited before reciting this verse 108 times. Water is to be kept in a copper vessel to sprinkle in the residence/ office area as per purpose of verse. In addition, this water is to be offered to those who seek to derive benefit from this verse. The verse has to repeated at a fixed time & finished before sunrise as well as before light of dawn daily for 40 days without a gap at the same place. Reciting at the banks of a river (as in the case of a mantra) or at a holy place multiplies the effects further.

Thank you,
Best Wishes,
Vijay Goel
Jyotish Visharad (ICAS) B.sc, MBA
Astrologer and Vastu Counselor,
mob:+91 9214502239


Financial prosperity doha from Guru Granth Sahib



This passage has to be recited 108 times after the reading of the Japji Sahib & completed in the early morning (before sunrise & before dawn light starts) continuously for a period of 40 days. It is good if you keep some water in a copper lota & sprinkle it in the house as well as drink from it on the 40th day. Take care that the water does not dry up during the period that it is being recited. If it does, keep refilling. Of course, there are other passages with similar effect in the Guru Granth Sahib too.

Thank you,
Best Wishes,
Vijay Goel
Jyotish Visharad (ICAS) B.sc, MBA
Astrologer and Vastu Counselor,
mob:+91 9214502239




Wednesday, April 25, 2012

Dont eat two opposite things together


१)अंगूर के साथ शहद का प्रयोग नही करना चाहिए ,नहीं तो पेट दर्द हो सकता है |
२)दही और पनीर का प्रयोग भी एक साथ करना अच्छा नही होता |
३)शहद के साथ खरबूजा और मूली नहीं खानी चाहिए |
४)घी और तेल को एक साथ मिला कर न इस्तेमाल करें
५)दही के साथ अंडा और इमली के प्रयोग से बचना चाहिए |
६)दूध के साथ किसी प्रकार की खटाई का इस्तेमाल न करें |
७)मछली खाने के बाद दूध ,शहद या गन्ने का रस पीना नुकसान दे होता है |
८)शहद और घी कभी भी सम मात्रा में नही खाने चाहिए|
९)खरबूजे के सेवन के बाद या साथ में दही खाना काफ़ी नुकसान देता है |
१०)खटाई खाने के तुरन्त बाद लस्सी या शरबत नहीं पीना चाहिए |

इस तरह छोटी छोटी बातों का ध्यान रख कर स्वस्थ रहा जा सकता |


Tuesday, April 24, 2012

Akshaya Tritiya अक्षय तृतीया

अक्षय तृतीया या आखा तीज वैशाख मास में शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को कहते हैं। पौराणिक ग्रंथों के अनुसार इस दिन जो भी शुभ कार्य किये जाते हैं, उनका अक्षय फल मिलता है।अक्षय का अर्थ है कभी न क्षय समाप्त होने वाला। सम्पूर्णं कामनाओं को प्रदान करने वाला यह व्रत वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को किया जाता है यदि यह तृतीया रोहिणी नक्षण से युक्त हो तो विशेष रूप से पूज्य मानी जाती है।भविष्य पुराण के अनुसार इस तिथि की युगादि तिथियों में गणना होती है, सतयुग और त्रेता युग का प्रारंभ इसी तिथि से हुआ है। भगवान विष्णु ने नर-नारायण, हयग्रीव और परशुराम जी का अवतरण भी इसी तिथि को हुआ था। ब्रह्माजी के पुत्र अक्षय कुमार का आविर्भाव भी इसी दिन हुआ था। इस दिन श्रीबद्रीनाथ जी की प्रतिमा स्थापित कर पूजा की जाती है और श्री लक्ष्मी नारायण-लक्ष्मी नारायण के दर्शन किए जाते हैं। प्रसिद्ध तीर्थ स्थल बद्रीनारायण के कपाट भी इसी तिथि से ही पुनः खुलते हैं।इस दिन दिया गया दान, किया हुआ हवन और जप सभी अक्षय बतलाये गये हैं। जो स्त्री सब प्रकार के सुख चाहती है उन्हें यह व्रत अवश्य करना चाहिए। यह व्रत करके स्त्री अखण्ड सौभाग्यवती होती है, इस व्रत अनुष्ठान करने वाले की संतान अक्षय हो जाती है और की हुई कामना पूर्ण होती है। अक्षय तृतीया के दिन की गई साधना व पूजा का फल कभी कम नहीं होता इसलिए इसे बहुत ही शुभ दिन माना जाता है :-

1. आपके पास धन की कोई कमी न हो :- मंत्र- ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं दारिद्रय विनाशके जगत्प्रसूत्यै नम:।। अक्षय तृतीया के दिन यह प्रयोग प्रारंभ करें। इसके बाद प्रतिदिन अपनी इच्छानुसार इस मंत्र का जप करें। जप के लिए कमलगट्टे की माला का उपयोग करें। माला जपते समय सामने देवी लक्ष्मी का चित्र तथा शुद्ध घी का दीपक जलते रहना चाहिए। 12 लाख मंत्र जप होने पर यह मंत्र सिद्ध हो जाता है।

2. विवादों से परेशान है : - मंत्र

सर्वाबाधाविनिर्मुक्तो धन-धान्य सुतान्वित:।

मनुष्यो मत्प्रसादेन भविष्यति न संशय:।।

अक्षय तृतीया रात्रि में पूजन के कमरे काली मां की मूर्ति या चित्र स्थापित करें। अपने सामने बाजोट पर सफेद वस्त्र बिछाकर काली यंत्र स्थापित करें। चित्र एवं यंत्र पर लाल फूल चढ़ाएं। यंत्र का पूजन करें। रात्रि में 10 बजे बाद 108 बार(एक माला) स्फटिक माला से इस मंत्र का जप करें। इस दौरान दीपक व अगरबत्ती जलती रहना चाहिए। इस क्रिया को तीन दिन तक इसी प्रकार दोहराएं। साधना समाप्ति के बाद मां काली से विवाद मुक्ति के लिए प्रार्थना करें।

3. धन प्राप्ति के लिए : - माता लक्ष्मी जी की प्रतिमा या चित्र को ताम्बे की बड़ी थाली में स्थापित कर पूजना चाहिए, देवी को धूप दीप, नवैद्य,पंचामृत व दक्षिणा अर्पित करें, उत्तर दिशा की ओर मुख रख कर मंत्र का जाप करें, 9 माला मंत्र जाप करें या विशेष इच्छाओं हेतु 21 माला करनी चाहिए, लाल रंग के आसन पर बैठ कर ही जाप करें, खीर का प्रसाद चढ़ाएं व बाँटें, देवी को नारियल व पुष्प माला अर्पित करें ।
मंत्र-ॐ ह्रीं श्रीं ह्रीं श्रीं कमालात्मिके स्वाहा: ।


4. बिमारियों से मुक्ति : - अक्षय तृतीया को माँ पार्वती जी की पूजा करनी चाहिए, देवी को लाल चुनरी चढ़ाएं,पान, लौंग,इलायची आदि अर्पित करें, उत्तर दिशा की ओर मुख रख कर मंत्र का जाप करें, 11 माला करनी चाहिए, लाल रंग के आसन पर बैठ कर ही जाप करें, फलों का प्रसाद अर्पित करें, कमल के या कनेर के फूल अर्पित करें ।

मंत्र - ॐ श्रीं अष्टचक्र नायिके स्वाहा: ।

5. कभी न होगी पैसे की कमी : - अक्षय तृतीया की रात को साधक शुद्धता के साथ स्नान कर पीली धोती धारण करे और एक आसन पर उत्तर की ओर मुंह करके बैठ जाएं तथा सामने सिद्ध लक्ष्मी यंत्र को स्थापित करें जो विष्णु मंत्र से सिद्ध हो और स्फटिक माला से निम्न मंत्र का 21 माला जप करें। मंत्र जप के बीच उठे नहीं ।

मंत्र - ऊँ श्रीं ह्रीं श्रीं ऐं ह्रीं श्रीं फट्
 
-------
Thank you
Best Wishes,
Vijay Goel
Vedic Astrologer and Vastu Consultant,
Cell : +91 8003004666

Tuesday, April 3, 2012

Ayurveda remedies







TRY IT -------------------Relieve all back pain by having 15-20 almonds a day ...

TRY IT --------------Strawberries are rich in potassium and magnesium ,both of which are effective in lowering blood pressure...
Tomatoes contain lycopene which is a powerful antioxidant against cancer cell...

TRY IT -------------------Adding ellaichi(cardamom) to tea releases oxytocin that helps lift depression


Guava is better than orange because guava contain more Vitamin C than orange and guava is a lot cheaper than orange.the skin of guava contains more than 5 times Vit. C than that of an orange.IT Contains Vitamin A and B,Calcium,Nicot inic Acid,Phosphorus ,Potassium,Iron,Fiber SO guava Beneficial in Prolonged menstruation,Hi gh blood pressure,Obesity and in Scurvy..!!