Saturday, January 21, 2012

Uses of Roots and leaves of trees



हमारे आसपास पाए जाने वाले विभिन्न पेड़-पौधों के पत्तों, फलों आदि का टोटकों के रूप में उपयोग भी हमारी सुख-समृद्धि की वृद्धि में सहायक हो सकता है। यहां कुछ ऐसे ही सहज और सरल उपायों का उल्लेख प्रस्तुत है, जिन्हें अपना कर पाठकगण लाभ उठा सकते हैं।

विल्व पत्र : अश्विनी नक्षत्र वाले दिन एक रंग वाली गाय के दूध में बेल के पत्ते डालकर वह दूघ निःसंतान स्त्री को पिलाने से उसे संतान की प्राप्ति होती है।

अपामार्ग की जड़ : अश्विनी नक्षत्र में अपामार्ग की जड़ लाकर इसे तावीज में रखकर किसी सभा में जाएं, सभा के लोग वशीभूत होंगे।

नागर बेल का पत्ता : यदि घर में किसी वस्तु की चोरी हो गई हो, तो भरणी नक्षत्र में नागर बेल का पत्ता लाकर उस पर कत्था लगाकर व सुपारी डालकर चोरी वाले स्थान पर रखें, चोरी की गई वस्तु का पला चला जाएगा।

संखाहुली की जड़ : भरणी नक्षत्र में संखाहुली की जड़ लाकर तावीज में पहनें तो विपरीत लिंग वाले प्राणी आपसे प्रभावित होंगे।

आक की जड़ : कोर्ट कचहरी के मामलों में विजय हेतु आर्द्रा नक्षत्र में आक की जड़ लाकर तावीज की तरह गले में बांधें।

दूधी की जड़ : सुख की प्राप्ति के लिए पुनर्वसु नक्षत्र में दूधी की जड़ लाकर शरीर में लगाएं।

शंख पुष्पी : पुष्य नक्षत्र में शंखपुष्पी लाकर चांदी की डिविया में रखकर तिजोरी में रखें, धन की वृद्धि होगी।

बरगद का पत्ता : अश्लेषा नक्षत्र में बरगद का पत्ता लाकर अन्न भंडार में रखें, भंडार भरा रहेगा।

धतूरे की जड़ : अश्लेषा नक्षत्र में धतूरे की जड़ लाकर घर में रखें, घर में सर्प नहीं आएगा और आएगा भी तो कोई नुकसान नहीं पहुंचाएगा।

बेहड़े का पत्ता : पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र में बेहड़े का पत्ता लाकर घर में रखें, घर ऊपरी हवाओं के प्रभाव से मुक्त रहेगा।

नीबू की जड़ : उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र में नीबू की जड़ लाकर उसे गाय के दूध में मिलाकर निःसंतान स्त्री को पिलाएं, उसे पुत्र की प्राप्ति होगी।

चंपा की जड़ : हस्त नक्षत्र में चंपा की जड़ लाकर बच्चे के गले में बांधें, बच्चे की प्रेत बाधा तथा नजर दोष से रक्षा होगी।

चमेली की जड़ : अनुराधा नक्षत्र में चमेली की जड़ गले में बांधें, शत्रु भी मित्र हो जाएंगे।

काले एरंड की जड़ : श्रवण नक्षत्र में एरंड की जड़ लाकर निःसंतान स्त्री के गले में बांधें, उसे संतान की प्राप्ति होगी।

तुलसी की जड़ : पूर्वा भाद्रपद नक्षत्र में तुलसी की जड़ लाकर मस्तिष्क पर रखें, अग्निभय से मुक्ति मिलेगी।
Thank you
Best Wishes,
Vijay Goel
Vedic Astrologer and Vastu Consultant,

Debt repayment mangal strotra


|| ऋणमोचकमङ्गलस्तोत्रम् ||

 
श्रीगणेशाय नमः||
 
मङ्गलो भूमिपुत्रश्च ऋणहर्ता धनप्रदः |
स्थिरासनो महाकयः सर्वकर्मविरोधकः || १||
 
लोहितो लोहिताक्षश्च सामगानां कृपाकरः | धरात्मजः कुजो भौमो भूतिदो भूमिनन्दनः || २||
 
अङ्गारको यमश्चैव सर्वरोगापहारकः |
व्रुष्टेः कर्ताऽपहर्ता च सर्वकामफलप्रदः || ३||
 
एतानि कुजनामनि नित्यं यः श्रद्धया पठेत् |
ऋणं न जायते तस्य धनं शीघ्रमवाप्नुयात् || ४||
 
धरणीगर्भसम्भूतं विद्युत्कान्तिसमप्रभम् |
कुमारं शक्तिहस्तं च मङ्गलं प्रणमाम्यहम् || ५||
 
स्तोत्रमङ्गारकस्यैतत्पठनीयं सदा नृभिः |
न तेषां भौमजा पीडा स्वल्पाऽपि भवति क्वचित् || ६||
 
अङ्गारक महाभाग भगवन्भक्तवत्सल |
त्वां नमामि ममाशेषमृणमाशु विनाशय || ७||
 
ऋणरोगादिदारिद्रयं ये चान्ये ह्यपमृत्यवः |
भयक्लेशमनस्तापा नश्यन्तु मम सर्वदा || ८||
 
! अतिवक्त्र दुरारार्ध्य भोगमुक्त जितात्मनः |
तुष्टो ददासि साम्राज्यं रुश्टो हरसि तत्ख्शणात् || ९||
 
विरिंचिशक्रविष्णूनां मनुष्याणां तु का कथा |
तेन त्वं सर्वसत्त्वेन ग्रहराजो महाबलः || १०||
 
पुत्रान्देहि धनं देहि त्वामस्मि शरणं गतः |
ऋणदारिद्रयदुःखेन शत्रूणां च भयात्ततः || ११||

एभिर्द्वादशभिः श्लोकैर्यः स्तौति च धरासुतम् |
महतिं श्रियमाप्नोति ह्यपरो धनदो युवा || १२||
Thank you
Best Wishes,
Vijay Goel
Vedic Astrologer and Vastu Consultant,
Cell : +91 8003004666

Utility of sesame seeds



तिल के बीजों का प्रभाव

असीरियन पुराणों में वर्णन है कि देवताओं ने पृथ्वी का निर्माण करने से पहले तिलबीज से बनने वाली शराब पी थी। एशियाई आहार श्रृंखला में आदिकाल से तिलबीज शामिल रहे हैं। ईसा के 3000 साल पहले से 5000 साल बाद तक जिक्र होता रहा है कि चीनी सभ्यता में तिलबीज को सम्मानजनक स्थान हासिल है।

वे लोग सदियों से तिलबीज के तेल के दीपक से अपनी अंधेरी रातें रोशन करते आए हैं। चीनियों की काली रोशनाई भी तिलबीज के तेल के दीपक से बनती थी। अफ्रीकन काले नीग्रो गुलामों के साथ तिल के बीज अमेरिका महाद्वीप में भी पहुंच गए। अब तिल के बीज लगभग हर व्यंजन में इस्तेमाल किए जाते हैं। एशियाई देशों में तिलबीज के तेल का इस्तेमाल खाना पकाने के लिए सदियों से इस्तेमाल किया जाता है।

जरूरी है तांबा
तिलबीज से भरा हुआ एक चौथाई कप तांबे की रोजाना की खुराक की 75 फीसद मात्रा की आपूर्ति कर देता है। इसी तरह मैगनेशियम की 32 फीसद तथा कैल्शियम की 36 फीसद कमी की पूर्ति करता है। यदि इतने खनिज तत्व आपको खुराक में रोज मिल रहे हैं तो इसमें से तांबे की मात्रा रिह्यूमेटाइड आर्थराइटिस से होने वाली तकलीफ में राहत प्रदान कर सकती है। तांबा दर्द निवारण एवं एंटिऑक्सीडेंट एंजाइम प्रणाली में महत्वपूर्ण घटक है।

यह धातु रक्त नलिकाओं में लचीलापन एवं मजबूती प्रदान करने वाली महत्वपूर्ण धातु के रूप में जाना जाता है। मैग्नेशियम से रक्त नलिकाओं में शुद्धि एवं श्वसन संबंधी बीमारियों में राहत मिलती है। मैगनेशियम से अस्थमा के दौरे में राहत मिलती है तथा श्वसन प्रणाली खुलने में सहायता मिलती है।
Thank you
Best Wishes,
Vijay Goel
Vedic Astrologer and Vastu Consultant,
Cell : +91 8003004666

Sri Shiva Kavach श्री शिव कवच



श्री शिव कवच


ॐ नमो भगवते सदा-शिवाय । त्र्यम्बक सदा-शिव ! नमस्ते-नमस्ते । ॐ ह्रीं ह्लीं लूं अः एं ऐं महा-घोरेशाय नमः । ह्रीं ॐ ह्रौं शं नमो भगवते सदा-शिवाय ।
सकल-तत्त्वात्मकाय, आनन्द-सन्दोहाय, सर्व-मन्त्र-स्वरूपाय, सर्व-यंत्राधिष्ठिताय, सर्व-तंत्र-प्रेरकाय, सर्व-तत्त्व-विदूराय,सर्-तत्त्वाधिष्ठिताय, ब्रह्म-रुद्रावतारिणे, नील-कण्ठाय, पार्वती-मनोहर-प्रियाय, महा-रुद्राय, सोम-सूर्याग्नि-लोचनाय, भस्मोद्-धूलित-विग्रहाय, अष्ट-गन्धादि-गन्धोप-शोभिताय, शेषाधिप-मुकुट-भूषिताय, महा-मणि-मुकुट-धारणाय, सर्पालंकाराय, माणिक्य-भूषणाय, सृष्टि-स्थिति-प्रलय-काल-रौद्रावताराय, दक्षाध्वर-ध्वंसकाय, महा-काल-भेदनाय, महा-कालाधि-कालोग्र-रुपाय, मूलाधारैक-निलयाय ।
तत्त्वातीताय, गंगा-धराय, महा-प्रपात-विष-भेदनाय, महा-प्रलयान्त-नृत्याधिष्ठिताय, सर्व-देवाधि-देवाय, षडाश्रयाय, सकल-वेदान्त-साराय, त्रि-वर्ग-साधनायानन्त-कोटि-ब्रह्माण्ड-नायकायानन्त-वासुकि-तक्षक-कर्कोट-शङ्ख-कुलिक-पद्म-महा-पद्मेत्यष्ट-महा-नाग-कुल-भूषणाय, प्रणव-स्वरूपाय । ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रैं ह्रौं ह्रः, हां हीं हूं हैं हौं हः ।
चिदाकाशायाकाश-दिक्स्वरूपाय, ग्रह-नक्षत्रादि-सर्व-प्रपञ्च-मालिने, सकलाय, कलङ्क-रहिताय, सकल-लोकैक-कर्त्रे, सकल-लोकैक-भर्त्रे, सकल-लोकैक-संहर्त्रे, सकल-लोकैक-गुरवे, सकल-लोकैक-साक्षिणे, सकल-निगम-गुह्याय, सकल-वेदान्त-पारगाय, सकल-लोकैक-वर-प्रदाय, सकल-लोकैक-सर्वदाय, शर्मदाय, सकल-लोकैक-शंकराय ।
शशाङ्क-शेखराय, शाश्वत-निजावासाय, निराभासाय, निराभयाय, निर्मलाय, निर्लोभाय, निर्मदाय, निश्चिन्ताय, निरहङ्काराय, निरंकुशाय, निष्कलंकाय, निर्गुणाय, निष्कामाय, निरुपप्लवाय, निरवद्याय, निरन्तराय, निष्कारणाय, निरातङ्काय, निष्प्रपंचाय, निःसङ्गाय, निर्द्वन्द्वाय, निराधाराय, नीरागाय, निष्क्रोधाय, निर्मलाय, निष्पापाय, निर्भयाय, निर्विकल्पाय, निर्भेदाय, निष्क्रियाय, निस्तुलाय, निःसंशयाय, निरञ्जनाय, निरुपम-विभवाय, नित्य-शुद्ध-बुद्धि-परिपूर्ण-सच्चिदानन्दाद्वयाय, ॐ हसौं ॐ हसौः ह्रीम सौं क्षमलक्लीं क्षमलइस्फ्रिं ऐं क्लीं सौः क्षां क्षीं क्षूं क्षैं क्षौं क्षः ।
परम-शान्त-स्वरूपाय, सोहं-तेजोरूपाय, हंस-तेजोमयाय, सच्चिदेकं ब्रह्म महा-मन्त्र-स्वरुपाय, श्रीं ह्रीं क्लीं नमो भगवते विश्व-गुरवे, स्मरण-मात्र-सन्तुष्टाय, महा-ज्ञान-प्रदाय, सच्चिदानन्दात्मने महा-योगिने सर्व-काम-फल-प्रदाय, भव-बन्ध-प्रमोचनाय, क्रों सकल-विभूतिदाय, क्रीं सर्व-विश्वाकर्षणाय ।
जय जय रुद्र, महा-रौद्र, वीर-भद्रावतार, महा-भैरव, काल-भैरव, कल्पान्त-भैरव, कपाल-माला-धर, खट्वाङ्ग-खङ्ग-चर्म-पाशाङ्कुश-डमरु-शूल-चाप-बाण-गदा-शक्ति-भिन्दिपाल-तोमर-मुसल-मुद्-गर-पाश-परिघ-भुशुण्डी-शतघ्नी-ब्रह्मास्त्र-पाशुपतास्त्रादि-महास्त्र-चक्रायुधाय ।
भीषण-कर-सहस्र-मुख-दंष्ट्रा-कराल-वदन-विकटाट्ट-हास-विस्फारित ब्रह्माण्ड-मंडल नागेन्द्र-कुण्डल नागेन्द्र-हार नागेन्द्र-वलय नागेन्द्र-चर्म-धर मृत्युञ्जय त्र्यम्बक त्रिपुरान्तक विश्व-रूप विरूपाक्ष विश्वम्भर विश्वेश्वर वृषभ-वाहन वृष-विभूषण, विश्वतोमुख ! सर्वतो रक्ष रक्ष, ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल स्फुर स्फुर आवेशय आवेशय, मम हृदये प्रवेशय प्रवेशय, प्रस्फुर प्रस्फुर ।
महा-मृत्युमप-मृत्यु-भयं नाशय-नाशय, चोर-भय-मुत्सादयोत्सादय, विष-सर्प-भयं शमय शमय, चोरान् मारय मारय, मम शत्रुनुच्चाट्योच्चाटय, मम क्रोधादि-सर्व-सूक्ष्म-तमात् स्थूल-तम-पर्यन्त-स्थितान् शत्रूनुच्चाटय, त्रिशूलेन विदारय विदारय, कुठारेण भिन्धि भिन्धि, खड्गेन छिन्धि छिन्धि, खट्वांगेन विपोथय विपोथय, मुसलेन निष्पेषय निष्पेषय, वाणैः सन्ताडय सन्ताडय, रक्षांसि भीषय भीषय, अशेष-भूतानि विद्रावय विद्रावय, कूष्माण्ड-वेताल-मारीच-गण-ब्रह्म-राक्षस-गणान् संत्रासय संत्रासय, सर्व-रोगादि-महा-भयान्ममाभयं कुरु कुरु, वित्रस्तं मामाश्वासयाश्वासय, नरक-महा-भयान्मामुद्धरोद्धर, सञ्जीवय सञ्जीवय, क्षुत्-तृषा-ईर्ष्यादि-विकारेभ्यो मामाप्याययाप्यायय दुःखातुरं मामानन्दयानन्दय शिवकवचेन मामाच्छादयाच्छादय ।
मृत्युञ्जय त्र्यंबक सदाशिव ! नमस्ते नमस्ते, शं ह्रीं ॐ ह्रों ।

Best Wishes
Vijay Goel
Cell : 92145 02239
email : goelvj@gmail.com
www.IndianAstroVedic.com

Wednesday, January 4, 2012

KĀĻASARPA-YOGA written by Srividyaswami M N Saraswati


Srividyaswami M N Saraswati

KĀĻASARPA-YOGA:
“rāhu-ketumadhye grahāh sapta vighndā Kāļasarpasamjňakāh/
sutatrāsādisakaļā doşāh rogeņa pravāse maraņam dhruvam//
“bhairava-stotra-pāţhena Kāļasarpam vinaśyati/
kāļasarpa-yogasya vişam vişākta-jīvane bhayāvaham//
punah-punarapi śokam ca yauvane rogārtyādikam dhruvam/
pūrvajanmakŗtam pāpam brahmaśāpāt sutakşayah/
kiňcit pretādidoşam ca sukha-saukhyam vinaśyati//

KĀĻASARPA-YOGA:
If in a horoscope all the seven planets are between Rāhu & Ketu, in relation to any of the houses, then the YOGA thus formed is called KĀĻASARPA-YOGA. Under its influence, the native will not enjoy mental peace inspite of having respect, money, power and prosperity. The native may rise to a high position financially from very humble beginnings, but he may have to suffer humiliation on account of Govt. penalty. The native has to suffer in some area of his life.

The adversaries can be nullified if one recites ‘Baţuka-Bhairava-Mantra’ everyday.

Like ‘vişasya vişamauşadham’, the adverse effect of Rāhu & Ketu is nullified by malefic like Mars & Saturn. If the 9th lord, the Ascdt. lord or the Ascdt are under the influence of Mars & Saturn, the YOGA becomes ineffective. If the dispositions of Rāhu & Ketu are together, then also the adverse results of the Yoga get nullified.

Nonetheless It must be remembered that since Rāhu is ever receding/retrograde planet, when all the seven planets are on the mouth of Rahu and hemmed in between Ketu with no planet on the other side of the axis, then only KĀĻASARPA-YOGA becomes vigorously effective.

Thus three important factors to be noted in the formation of KĀĻASARPA-YOGA are:
(i) The evils get intensified if the Ascdt. is also with the other seven planets.
(ii) The evils get almost neutralized, if the if the Ascdt. is on the other side.
(iii) The Yoga can be considered defunct even if a single planet is with Rāhu or Ketu or out of the Rāhu-Ketu Axis.


Cancelling Factors: Kāļasarpa-Bhańga-Yoga occurs when :
(1). Grahamāļikā-Yoga is present.
( 2 ). Rāhu & Ketu are aspected by or conjoined with their dispositors.
( 3 ). The dispositors of Rāhu & Ketu are called ‘Karmic Control Planets’. If both the Karmic Control Planets are associated, or are mutually aspected or placed in mutual Kendra or Trikoņas, Kāļasarpa-Bhańga-Yoga may be said to be present, which nullifies adverse effects.
( 4 ). Rāhu & Ketu form any auspicious Yoga.
( 5 ). Yoga-kāraka or Yoga –forming planets with Rāhu or Ketu.
( 6 ). All the seven planets occupy three or four houses adjacent to Rāhu or Ketu continuously.
( 7 ). The 9th house is well disposed and is aspected or occupied by its own lord or by Yoga-kāraka.
( 8 ). Rāhu & Ketu are in exaltation.
( 9 ). Rāhu occupies his own Nakşatra i.e. Ārdrā, Svāti or Śatabhişā.
(10).The 9th house or 9th lord is aspected by by or associated either with Mars or Saturn.
(11).The Ascendant is owned by Mars or Saturn or these planets influence the Ascendant and its lord.
(12).The dispositors of Saturn or Mars are in quadrants from each other or in Dvir-Dvādaśa(2/12)positions.

Kaala Sarpa Yoga Rudraksha  Remedy :









Kaal Sarp Dosha Nivaran Pendant [as displayed in above figure] is created with the combination of one bead of 8 Mukhi Rudraksha, One bead of 9 Mukhi Rudraksha and One Kaal Sarp Locket in Silver ( approx. 6 gms ). A Kaal Sarp Dosha is formed when all the planets are placed between the planets Rahu and Ketu.

Configuration of above pendent : 11 mukhi Hanuman rudraksha in the centre + Eight mukhi rudraksha (1) + Nine mukhi rudraksha (1). Made in strong silver wire + five mukhi rudraksha beads in silver with caps.

Yantra Remedy :

Thank you
Best Wishes,
Vijay Goel
Vedic Astrologer and Vastu Consultant,
Mob : +91 8003004666