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Saturday, July 14, 2012
Ekadasi Vrata
आज श्रावण महीने के कृष्ण पक्ष की ग्यारहवीं तिथि है , इसे कामिका एकादशी कहते हैं , आज के व्रत की कथा इस प्रकार है :-
युधिष्ठिर ने पूछा: गोविन्द ! वासुदेव ! आपको मेरा नमस्कार है ! श्रावण के
कृष्णपक्ष में कौन सी एकादशी होती है ? कृपया उसका वर्णन कीजिये ।
भगवान श्रीकृष्ण बोले: राजन् ! सुनो । मैं तुम्हें एक पापनाशक उपाख्यान
सुनाता हूँ, जिसे पूर्वकाल में ब्रह्माजी ने नारदजी के पूछने पर कहा था ।
नारदजी ने प्रश्न किया: हे भगवन् ! हे कमलासन ! मैं आपसे यह सुनना चाहता
हूँ कि श्रवण के कृष्णपक्ष में जो एकादशी होती है, उसका क्या नाम है? उसके
देवता कौन हैं तथा उससे कौन सा पुण्य होता है? प्रभो ! यह सब बताइये ।
ब्रह्माजी ने कहा: नारद ! सुनो । मैं सम्पूर्ण लोकों के हित की इच्छा से
तुम्हारे प्रश्न का उत्तर दे रहा हूँ । श्रावण मास में जो कृष्णपक्ष की
एकादशी होती है, उसका नाम ‘कामिका’ है । उसके स्मरणमात्र से वाजपेय यज्ञ का
फल मिलता है । उस दिन श्रीधर, हरि, विष्णु, माधव और मधुसूदन आदि नामों से
भगवान का पूजन करना चाहिए ।
भगवान श्रीकृष्ण के पूजन से जो फल
मिलता है, वह गंगा, काशी, नैमिषारण्य तथा पुष्कर क्षेत्र में भी सुलभ नहीं
है । सिंह राशि के बृहस्पति होने पर तथा व्यतीपात और दण्डयोग में गोदावरी
स्नान से जिस फल की प्राप्ति होती है, वही फल भगवान श्रीकृष्ण के पूजन से
भी मिलता है ।
जो समुद्र और वनसहित समूची पृथ्वी का दान करता है तथा जो ‘कामिका एकादशी’ का व्रत करता है, वे दोनों समान फल के भागी माने गये हैं ।
जो ब्यायी हुई गाय को अन्यान्य सामग्रियों सहित दान करता है, उस मनुष्य को
जिस फल की प्राप्ति होती है, वही ‘कामिका एकादशी’ का व्रत करनेवाले को
मिलता है । जो नरश्रेष्ठ श्रावण मास में भगवान श्रीधर का पूजन करता है,
उसके द्वारा गन्धर्वों और नागों सहित सम्पूर्ण देवताओं की पूजा हो जाती है ।
अत: पापभीरु मनुष्यों को यथाशक्ति पूरा प्रयत्न करके ‘कामिका एकादशी’ के
दिन श्रीहरि का पूजन करना चाहिए । जो पापरुपी पंक से भरे हुए संसार समुद्र
में डूब रहे हैं, उनका उद्धार करने के लिए ‘कामिका एकादशी’ का व्रत सबसे
उत्तम है । अध्यात्म विधापरायण पुरुषों को जिस फल की प्राप्ति होती है,
उससे बहुत अधिक फल ‘कामिका एकादशी’ व्रत का सेवन करनेवालों को मिलता है ।
‘कामिका एकादशी’ का व्रत करनेवाला मनुष्य रात्रि में जागरण करके न तो कभी
भयंकर यमदूत का दर्शन करता है और न कभी दुर्गति में ही पड़ता है ।
लालमणि, मोती, वैदूर्य और मूँगे आदि से पूजित होकर भी भगवान विष्णु वैसे
संतुष्ट नहीं होते, जैसे तुलसीदल से पूजित होने पर होते हैं । जिसने तुलसी
की मंजरियों से श्रीकेशव का पूजन कर लिया है, उसके जन्मभर का पाप निश्चय ही
नष्ट हो जाता है ।
‘जो दर्शन करने पर सारे पापसमुदाय का नाश कर देती है, स्पर्श करने पर शरीर
को पवित्र बनाती है, प्रणाम करने पर रोगों का निवारण करती है, जल से
सींचने पर यमराज को भी भय पहुँचाती है, आरोपित करने पर भगवान श्रीकृष्ण के
समीप ले जाती है और भगवान के चरणों मे चढ़ाने पर मोक्षरुपी फल प्रदान करती
है, उस तुलसी देवी को नमस्कार है ।’
जो मनुष्य एकादशी को दिन रात
दीपदान करता है, उसके पुण्य की संख्या चित्रगुप्त भी नहीं जानते । एकादशी
के दिन भगवान श्रीकृष्ण के सम्मुख जिसका दीपक जलता है, उसके पितर स्वर्गलोक
में स्थित होकर अमृतपान से तृप्त होते हैं । घी या तिल के तेल से भगवान के
सामने दीपक जलाकर मनुष्य देह त्याग के पश्चात् करोड़ो दीपकों से पूजित हो
स्वर्गलोक में जाता है ।’
भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं: युधिष्ठिर !
यह तुम्हारे सामने मैंने ‘कामिका एकादशी’ की महिमा का वर्णन किया है ।
‘कामिका’ सब पातकों को हरनेवाली है, अत: मानवों को इसका व्रत अवश्य करना
चाहिए । यह स्वर्गलोक तथा महान पुण्यफल प्रदान करनेवाली है । जो मनुष्य
श्रद्धा के साथ इसका माहात्म्य श्रवण करता है, वह सब पापों से मुक्त हो
श्रीविष्णुलोक में जाता है
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